India America Dairy Dispute: भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते में डेयरी क्षेत्र एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है. यह क्षेत्र 1.4 अरब से अधिक लोगों को भोजन और 8 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है. वर्तमान में, दोनों देश 1 अगस्त की समय सीमा से पहले “नॉन-वेज दूध” के मुद्दे पर समाधान खोजने का प्रयास कर रहे हैं. अब सवाल यह है कि नॉन-वेज दूध क्या है और भारत इसके लिए इतना सख्त क्यों है? इसके अलावा, अगर अमेरिकी दूध भारत में आयात होता है, तो इससे भारतीय किसानों को 1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान कैसे हो सकता है?
‘नॉन-वेज दूध’ क्या है? (What is non-veg milk)
भारत में गायों को वानस्पतिक चारा दिया जाता है, लेकिन अमेरिका में डेयरी फार्मिंग इंडस्ट्री में गायों को हाई-प्रोटीन डाइट के लिए जानवरों के अवशेष जैसे मांस, हड्डियों का चूरा और खून भी खिलाया जाता है. इस तरह के चारे से प्राप्त दूध को भारत में ‘नॉन-वेज दूध’ कहा जा रहा है.
नॉन-वेज दूध पर भारत का रूख
भारत में शाकाहार की उच्च दर और गाय को ‘गौ माता’ मानने की धार्मिक भावना के कारण, अमेरिकी डेयरी उत्पादों के आयात पर सरकार सख्त है. सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि आयातित डेयरी उत्पादों के लिए एक सर्टिफिकेट अनिवार्य होगा जिसमें यह गारंटी हो कि जानवरों को मांसाहारी चारा नहीं खिलाया गया है. जब तक अमेरिका यह गारंटी नहीं देता, भारत के दरवाजे उसके लिए बंद रहेंगे.
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी डेयरी उत्पादों के आयात से भारतीय अर्थव्यवस्था और किसानों की आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और करोड़ों किसान परिवार डेयरी से जुड़े हुए हैं. अगर अमेरिकी उत्पाद भारतीय बाजार में आते हैं, तो दूध की कीमतें 15% तक गिर सकती हैं, जिससे किसानों को सालाना 1 लाख 3 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है. यह रकम इतनी बड़ी है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को हिला सकती है, इसलिए सरकार किसानों की रक्षा के लिए इस आयात पर सख्ती बरत रही है.